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शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

~ऋण चुकाती आस~




वक्त के प्रांगण में
हालात पर दुष्टित नज़र
किस्मत का पहन लिबास 
अपना कहते लेकर खंजर

लेकर चलता कितने मुखौटे
कमजोरी से खेलता इंसान
चक्रव्यूह का सम्पूर्ण ज्ञान
हारती फिर भी मर्यादा

अजब तमाशा दुनिया का
मुस्कराहट आगे नस्तर पीछे
प्रेम दिखावा हत्यारी नियत
क़त्ल का तैयार सामान

क्रोधित होता ऊँचा स्वर
वेदना से होकर लचर
आत्मघात करते नुकीले शब्द
अंतर्मन पर घृणा का घेराव

एक लालसा रोज संवरती
प्रताड़ित होकर रोज जीती
एहसानों का उठाकर बोझ
ऋण चुकाती मरकर आस

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, ९ फरवरी २०१८

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