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शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

अतीत



~ अतीत ~

कभी मेरा अतीत
मुझसे बात करता है
और जान बूझ कर
जख्म को हरा करना
उसकी आदत बन गया है

मेरे अतीत में
ख्वाइश है जिद्द है
जिसमे सिमटा प्यार
आशीष और रिश्ता है
जो अब कहीं खो गया है

अतीत की मिठास
आज कड़वाहट लिए है
खुल कर मिलते थे जहाँ
आज हमें उनसे पूछ कर
मिलने जाना पड़ता है वहां

अतीत मे संस्कृति
और संस्कार साथ पलते थे
राष्ट्र प्रेम सीने मे धडकता था
अब पश्चिमी संस्कृति प्रतिष्ठा हुई
देश प्रेम कागजी हो गया

अतीत की परछाई
में तमाम चेहरे
अब आभासी हो गए है
और अपना कहने वाले
मुखौटा लगा मिलने आये है

अतीत का सच
आज का सिर्फ झूठ है
साथ छोड़ कर सब
मतलब का हाथ
थाम कर आज ऊंचाई चढ़ते है

अतीत में लोग
अपने 'प्रतिबिम्ब' से
रुक कर मिला करते थे
वो दर्पण जब टूट गया
अब लोग बच कर निकलते है

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १७/११/२०१७

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