पृष्ठ

रविवार, 23 अक्तूबर 2016

समझौता





एक लम्बे अंतराल के बाद
अंधेरो के आँचल से निकल
सूरज की किरणों से
लेकर चला था
कुछ रोशनी
और
एक योद्धा की  तरह
हौसलों का चौड़ा सीना लिए
कर्तव्य मार्ग पर
नैतिकता के
कठोर धरातल पर
ईमानदारी के पग भरते हुए
लक्ष्य को भेदने का
मूल्यों का अचूक अस्त्र लिए
चल पड़ा था .....

उजाले में भी
किस्मत का पत्थर
ठोकर दे गया
उम्मीद का घड़ा
टूट मिटटी में मिल गया
और
दोष मेरे सर मढ़
अंतर्मन को नियंत्रित कर
मुझे कटघरे में खड़ा कर गया...


मेरे अस्तित्व को
मिटाने की सुपारी लेकर
वक्त
किस्मत की आड़ में छिप गया
और किस्मत
साँसों को उनकी उम्र के सहारे छोड़
हंसती खिलखिलाती
मेरे जख्मो को हरा करती रही
और वेदना चुपचाप
सिसकती रही
आज शिकायत ने
वक्त और किस्मत की
साजिश से समझौता कर लिया


-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...