सज धज कर धानी चुनरी ओढ़ आना
मगन रह प्रेम रंग में सिंदूरी शाम तक
बंधन तन मन का जन्मों का साथी बना लेना
चल प्रिये हम
तुम खेलें ऐसी होली
कर आना अतीत का तुम विसर्जन
निर्विकल्प आनंद का एहसास लिए
होकर समर्पित तन मन तुम मेरा रंग देना
चल प्रिये हम
तुम खेलें ऐसी होली
मद भरे नयनो की मस्ती संग
चैत फागुन की तुम शरारत लिए
प्रीत गुलाल सी तन मन पर सजा लेना
चल प्रिये हम
तुम खेलें ऐसी होली
मिलन की चाह लिए व्याकुल मन
अधर संग सांस सांस भी मचल रही
रंग अपना, मेरे तन मन में बिखरा देना
चल प्रिये हम
तुम खेलें ऐसी होली
न टोकना तुम मुझे न टोकूंगा मैं तुम्हे
रंग देना अरमान, अर्पण कर प्रेम सारा
भर पिचकारी प्यार की तन मन रंग देना
चल प्रिये हम
तुम खेलें ऐसी होली
शर्म हया को तुम छोड़कर आना
संकलिप्त होकर रंग में मेरे रंग जाना
प्रेम रंग से तन मन पर हस्ताक्षर कर देना
चल प्रिये हम
तुम खेलें ऐसी होली
हृदय सहित अंग अंग भिगो जाना
पूर्णता का एहसास लिए प्रेमरस पी लेना
मधुर तरंग प्रेम की तन मन में छिपा देना
चल प्रिये हम
तुम खेलें ऐसी होली
-
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २२/३/२०१६
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया