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बुधवार, 16 मार्च 2016

मिलकर जाना ...




मिलकर जाना तुमसे
मोहब्बत और उसके एहसास को
पल पल जिया है तब से
तुम्हे और इन आती जाती साँसों को

परी नही सच नदी सी हो
बहता जिसमे है प्रेम पावन मेरे लिए
है मुझमे समाई हर लहर
हाँ सागर प्रेम का हो तुम मेरे लिए

प्रेमगीत मन में उभरते है
लेकिन कैसे लिखूं वो प्रेम ध्वनि
पाकर तुमको जो पाया है
कैसे कह दूं किस्मत का नही धनी

शब्द बस उतर आते है
होती रोज मुझे एक नई अनुभूति
मोहब्बत शब्दों की नही है
रूह में बसती, चेहरे पर है सजती

सच कहूं एक बात तुम्हे
तेरे इश्क में पागल होना है जरुरी
दिल दिमाग अब कहा काबू
तेरा मेरी जिन्दगी में होना है जरुरी

एहसास, शब्द समझा देते है
मन हमारा खुद व्याख्या कर लेता है 
अनुमति, कभी शब्द देते है
कभी खामोशी को मन समझ लेता है   

हर बात हमारी अब अपनी है
सुन्दरता बस मन की अब दिखती है
प्रेम समर्पण हमारी अमानत है 
मोहब्बत जिसको पाकीजा बना देती है

कहने को प्यार एक बार होता
लेकिन मुझे पल पल प्यार तुमसे है होता
प्रेम की तुम मेरी पराकाष्ठा हो
तारों के प्रांगण में प्रेम  जहाँ त्वरित होता 

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १६/६/२०१६  

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