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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

~चलो अब बड़ा हो जाऊं ~



सुना करते है अक्सर
दिल तो बच्चा है
पर क्या सच है ?
बचपन बीतने के साथ
सब त्यागना पड़ता है
चाहे हो
बचपन का निश्छल प्रेम
हल्की फुल्की शरारते
तुतला कर कुछ मांगना
अपनी पसंद का बालहट
जिद्द और चाह से
अनजाना मन
अपनों के प्यार के लिए
सरपट दौड़ता वो बचपन
अपनों की पहचान करता
मासूम चेहरा
गोदी में वो सुख का एहसास
आस पास खिलौनों का संसार
खिलौनों को जीवंत मानता
उनमे खुशी ढूंढ लेना
खिलौना कोई उठा ले  
या तोड़ दे
तो आसमान सर पर उठा लेना
किसी को हक़ से अपना कहना
अन्य बच्चो के साथ मैदान में
उसमे झूलता और खेलता बचपन    


तमाम बाते या
या कुछ अनकही बाते ही
तो है बचपन की
लेकिन बचपन गुजरते ही
छोड़ना पड़ता है
इन सब बातो को
जीवन के अन्य पड़ाव में
बीता बचपन अब
समय की रेखा को
लांघ चुका है 
जहाँ दिल को बच्चा
समझना एक भूल ही 
साबित होगा, समझा जाएगा
और बचपन शब्द तब
गाली लगने लगता है
जब कोई कहे
ये क्या बचपना है? 
दिल और उम्र
एक दूजे के
हमसफर तो है
लेकिन उम्र के साथ
दिल को जोड़ना
कठिन है यहाँ
और
पेश होना पड़ता है
समाज की अदालत में
और उम्र को कटघरे में
बार बार बेइज्जत होना पड़ता है
बचपना छोड़ने को
मजबूर दिल
उम्र का लिहाज करता
दुबक कर बैठ जाता है
और सोचता है
क्या दिल बच्चा है ?
फिर दिल कहता है
चलो अब बड़ा हो जाऊं
चलो अब बड़ा हो जाऊं

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १६/२/२०१६ 

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