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शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

दोषी कौन ....




अपनी हस्ती की 
तख़्ती लटकाये लोग 
जगह जगह 
किसी भीड़ का हिस्सा है 
अपना वर्चस्व बनाये रखने 
संवारने की कोशिश में
नापाक इरादे भी 
नेक आवरण में 
परोसकर 
तमाशा देखते है

पापी भी 
फल की चिंता में
पुण्य की आस में
हमारे बीच मौजूद है 
स्वार्थ सिद्ध करने हेतू 
राम राम जप कर 
खंजर भोकने को तैयार 
और हम 
जानकर भी अंजान
शायद 
आदत हो गई
या फिर बना ली है
क्योंकि हम भी 
उसी भीड़ 
उसी समाज
का आइना तो है
जिसमे ये प्रवृति 
फल फूल रही है

कुछ समझ पाये क्या 
कौन है वो 
पहचान लिया क्या
उस गुनाहगार को
या 
उस मित्र या
रिश्तेदार को 
या खुद ही 
अपने अंदर झांकने लगे
और खुद को भी 
मेरी तरह ही
आपने 
दोषी करार दे दिया है

-    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २०/१/२०१६

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