मौसम-मौसम किताबो का मौसम
अब आ ही गया
लगा है मेला, हर कोई अब किताबी
कीड़ा हो गया
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
कुछ का हुआ ऐसा प्रचार, किताबे बिकेगी हाथो हाथ
कुछ बाट जोहते रह जायेंगे, शायद
मलते रहेंगे हाथ
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
प्रकाशक भी शिकार करते रहे,
दिखाते रहे अपना प्यार
नए लेखक खुश होकर, लुटाते
रहे उन पर अपना प्यार
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
स्वयं घोषित कवि या
कहानीकार, गोता लगाने को तैयार
लुटा पैसो को अपने, छपी
किताब अब विमोचन को तैयार
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
शान है मित्रो को बताना, हमने
किताबी मेला देख लिया
कुछ ने फोटो खिंचवाकर,
मुफ्त किताबी उपहार पा लिया
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
कुछ पढ़कर मित्रो की वाह-वाही
कर, समीक्षक बन जायेंगे
मुफ्त पुस्तक की विनती कर, अच्छा-अच्छा
लिख जायेंगे
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
नहीं जानता इस भीड़ में
कितने अच्छे लेखक मिल पायेंगे
उनका लेखन व् कृतियां क्या साहित्य
का मान बढ़ा पायेंगे
लेखक सब झूमे, बिकने का मौसम आ गया
लेकिन दिल खुश थोड़ा ‘प्रतिबिम्ब’,
प्रेमी के नाते कहता हूँ
मेरी हिन्दी फिर जीने लगी
है, फले-फूले बस यही चाहता हूँ
लेखक सब झूमे, बिकने का
मौसम आ गया
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल १२/०१/२०१६
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया