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शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

~मुक्त किया~

इस  चित्र पर उभरे भाव 




कल तक
जिस रिश्ते से जुड़े थे
वो रिश्ता सच था,
चाहे वो भ्रम था
भ्रम को टूटना ही था
हकीकत से मिलना था

हाँ उस बंधन से
मुक्त किया
हर उस शख्स को
जिसने भी
मुझसे स्नेह का
रिश्ता बनाया

लेकिन
सत्यापित है अब
स्नेह छलावा है
स्वार्थ का यही
एक कड़वा सच है
आज बदलते रिश्ते
उसकी गवाही देते है

कसमे वादे
अस्तित्व का चोला
छोड़ देते है
बदलते वक्त का
दामन थाम लेते है
नीरस हुए एहसास
करवट बदल लेते है

चाह नही बाकी
तो जुड़ाव भी कैसा
ना चाहते हुए भी
आज दिल पत्थर किया
भ्रमित 'प्रतिबिम्ब' जो बना
आज उसे मुक्त किया
हाँ मैंने तुम्हे
आज मुक्त किया

मुक्त किया ....

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