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बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

..... सकता हूँ मैं



देख उदास तुम्हे
भला कैसे मुस्करा सकता हूँ मैं
हाँ रहो खुश तुम
वो प्यार देने की कोशिश कर सकता हूँ मैं

अमानत हो तुम
तुमसे कैसे खुद से दूर कर सकता हूँ
खुशी हो मेरी तुम
हर गम तुम्हारे ले सकता हूँ मैं

चाहता हूँ तुम्हे
चाहत से कैसे मुह मोड़ सकता हूँ
मोहब्बत हो मेरी तुम
तुम्हारे बिन कैसे रह सकता हूँ मैं

अपनाकर मुझे तुमने 
मेरे एहसास को तुमने जगह दी है
अहसान है तुम्हारा प्रिये
हकीकत को कैसे झुठला सकता हूँ मैं

जरुरत न हो जब मेरी
तब उपेक्षा बेहिचक कर सकती हो
प्यार में न सही प्रिये
मुसीबत में काम आ सकता हूँ मैं

शुक्रिया कहना चाहता हूँ
हक़दार नही जिसका मिला वो मुझे
जब लगे लायक नही
कह देना मुझे, दूर जा सकता हूँ मैं


-         प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

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