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सोमवार, 3 अगस्त 2015

क्यों ?




पूछ रहे कुछ बिखरे ज़ज्बात
बिगड़ गई है अपनी बात क्यों ?
धड़कन थी हमारी जो कभी
अब वो धड़कन बढाती है क्यों  ?
प्रेम अपना सावन था जहाँ
अब पतझड़ नज़र आता है क्यों ?
कभी एहसास उमड़ते थे जहाँ  
अब उस पल को हम तरसते है क्यों ?
शब्द, भाव, गीत-संगीत गूंजता था दरमियाँ
अब ये नज़र कहीं और आता है क्यों ?
साथ लिख जाते, बिन कहे समझ जाते थे
आज कोई और पढता लिखता समझाता है क्यों ?
उत्तर थे हम तुम्हारे हर सवाल के
आज हम पर ही प्रश्न खड़े है क्यों ?
देर सबेर ही सही वक्त अपना होता था
आज दूरी का जिम्मेदार वक्त बना क्यों ?
हर पल दीदार की थी जहाँ ख्वाइश
आज केवल कर सकते हम फरमाइश क्यों ?
हम पहले होते थे जिस कतार में  
अब आखिर में खड़े उसी कतार में क्यों ?
जानता हूँ हर सवाल का उत्तर तुम्हारे पास है
आखिर इन प्रश्नों को कोरा छोड़ा है क्यों ?

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 


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