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रविवार, 12 जुलाई 2015

भाव और शब्द ....


क्या हुआ इतने बैचैन क्यों नज़र आ रहे हो ? भावो ने शब्दो से पूछ ही लिया. शब्दो की खामोशी बरक़रार ही रही. कुछ ऐसा था जो आज शब्दों को कुछ भी कहने से रोक रहा था. भाव शब्दों के निशब्द होने से मन ही मन खुद को असहाय महसूस कर रहा था. शब्दो से ही भावो को महसूस किया जा सकता है. अगर शब्द ही नही तो भाव किस काम का. भावो का मंथन जारी था, शब्दों का रुक जाना भावो से बर्दाश्त नही हो रहा था. भावो को अपनी इस हालत पर रोने का मन हुआ लेकिन बात फिर वही, बिना शब्दों के रो भी नही सकता. हँसना - रोना, दर्द - खुशी, धर्म - कर्म, सच - झूठ, गलत - सही, इन सबको कैसे मैं दिखलाऊं.
हिम्मत कर भावो ने शब्दों को अपनी ओर खींच लिया और गले लगा लिया. गले लगाते ही शब्दों ने भी खामोशी तोड़ दी. रुंधी आवाज़ में कहने लगे : भाव तुम हमारे बिना अधूरे हो. तुम हमसे वो सब करवाते हो जो तुम चाहते हो, तुम खुद को लोगो तक या अपनों तक पहुँचाने के लिए मेरा इस्तेमाल करते हो. बस यही सोचकर खामोश थे हम कि तुम हमसे कहलवाकर खुद न जाने कहाँ गुम हो जाते हो और लोग हमें ही अच्छी बुरी नज़र से देखते है. हम हर भाषा को अपनाते हैं, उन्हें तुम्हारा सन्देश सुनाते हूँ, समझाते हैं, लेकिन तुम्हारी भाषा कोई नही, तुम्हारा मन जो चाहता है, समझता है, देखता है वह सब हम लोगो तक पहुँचाने में सक्षम है लेकिन फिर क्यों कुछ लोग समझ पाते है, कुछ लोग समझ नही पाते है और कुछ हमें देखना तक पसंद नही करते.
भावो ने शब्दों को सहलाते हुए कहा नियति है, हम दोनों पूरक है एक दूजे के बस इतना ध्यान रखो. हमारा काम है मन में अवतरित होना और तुम्हारा काम है उन्हें लोगो के दिल और दिमाग तक पहुंचाना. यह उन पर निर्भर करता है कि वे हमसे कैसा व्यवहार करते है. उनकी समझ कहाँ तक हमें समझने में समर्थ है. हाँ उनकी आयु, उनका अनुभव, उनकी चाहत और उनका ज्ञान इसमें अहम् भूमिका निभाते है. यह सुनकर इस बार शब्दों ने भावो को गले लगा लिया और वादा किया कि सदैव भावो का साथ निभाते रहंगे....भाव और शब्द फिर तैयार खड़े है उसी उत्साह उसी उमंग के साथ और प्रतिबिम्ब भी इंतजार में है उनसे मिलने के लिए ... 

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