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शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

वो....






फूलो से मोहब्बत सीखी है उसने, आँखों में शोखी कयामत ढाती है
महकती है फ़िजा उसके मुस्कराने से, घायल दिल को कर जाती है

ख़बर हर लम्हों की रखते है, करीब आने से न जाने क्यों डरते है
बेकरारी मिलन की बढ़ रही है, हर लम्हा जीते हर लम्हा मरते है

आँख मिलाती है आँखे चुराती है, आँखों से जाम पिलाती जाती है
कभी रंग-ए-मोहब्बत दिखती है, मगर हवा बगावत करती जाती है

लबो पर तबस्सुम लिए फिरती है, उस पर नज़ाकत का क्या कहना
शरारत दिल करना चाहे 'प्रतिबिम्ब', उसकी शराफत का क्या कहना

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