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सोमवार, 22 जून 2015

खुद से प्यार खुद से चाह





यहाँ अब दोस्तों को
दोस्त समझना अतिश्योक्ति होगी
जुड़ जाएगा वो स्वयं ही
जब उसे हमारी जरुरत होगी
मतलब की दुनिया में
वक्त आइना दिखाता है
दोस्त कहने वालो का
असली चेहरा दिखला देता है
डरता हूँ कही मेरे शब्दकोष से
दोस्त शब्द ही न एक दिन हट जाए

हाँ उन्हें अपना कहना बेहतर
जो हर मोड़ पर आते हैं नज़र
मौसम अपनेपन का जहाँ बदलता नही
मुझे लगता वही व्यक्ति विशेष सही
अपना गर पराया बन जाए तो सह लेंगे
दोस्त को दुश्मन बनते कैसे सह लेंगे
अब खुद से प्यार खुद से चाह करूँगा
दूसरो का न कोई अहसान अब लूँगा
अँधेरे में गुम हो भी जाए 'प्रतिबिंब' अगर
जानता हूँ रहेगा अपने साथ ही वो मगर

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