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गुरुवार, 1 जनवरी 2015

आगुन्तक २०१५


गत वर्ष का अंगज है, अब हमारा अंतरतम बन जाएगा 
आंगुतक बनकर आया, अब अंजल बन राह दिखायेगा 
अंकित होगा हर पन्ने पर अब, अंकक सा नज़र आएगा 
अंतभौम सा रोज बन, अंतरग्नि हो उथल पुथल मचाएगा  

अंबर-डंबर सा दिखा , अब वक्त नववर्ष बन कर उभर आया 
अंकुश लगा सकेगा विपदाओ पर, क्या अंतचर जीत जाएगा  
अंजस है 'प्रतिबिंब' इंसान, क्या सफलता में अंतरित हो पायेगा
अंतश्चित है आशंकित मेरा, क्या खुशियों का अंशल बन पाउंगा

करू यही विचार इस नव वर्ष, अंतर्मल से दूषित न हो तन मेरा  
अंतर्धान न हो जाए धर्म मेरा, कर्म का अंतिक सा हो साथ हमारा 
अंतज्योर्ति से रोशन हो मन मेरा, अंजुमन के लिए कुछ कर पाऊं
अंतर्निष्ठ बने हौसला, किस्मत की लड़ाई में अंत्यज न कहलाऊं

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

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