हर रिश्ते की
एक सीमा होती है
हाँ वक्त के साथ
उसमे बदलाव आते है
ये सीमाए
कभी तो खुली होती है
तो कभी बाँध दी जाती है
ये सीमाए
दिल से तय होती है
और ये दिल
जब अपना समझता है
तब सीमाओ की
पाबंदी नही होती है
जीवन में
जब दखल लगता है
तो सीमाए
तय होने लगती है
फिर रिश्तो का
झूठ भी
सेंध मारने लगता है
सच भी
सामने आने लगता है
वैसे
सच रिश्तो का
रिश्ते
मजबूर नही होते
रिश्ते
मजबूर नही करते
रिश्तो में प्रेम
और प्रेम में सीमा
सीमओं में अहसास
अहसासो में घुटन
'प्रतिबिंब' इसी घुटन में
रिश्ते का होता है अंत
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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