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शनिवार, 29 जून 2013

मैं पहाड़



मैं पहाड़


हाँ मैं पहाड़ !!
यूं तो पहाड़
हर जगह  विद्दमान है
मेरी खूबसूरती और मौसम
मनुष्य के मन को
शांति और सुकून देती है
शायद इसलिए
तुम्हारी आस्था के भगवान भी
सदियों से यहाँ विराजमान है ......

लेकिन समय के साथ
विकास के नाम पर
मेरे सीने पर इन्सान ने
विनाश की इबारत बना दी है
भगवान के नाम पर
न जाने कितने भगवान
मुझ पर बेहिसाब लाद दिए
पर्यटन के नाम पर
बेहिसाब दुकान और होटल
मुझे खोखला कर रहे है

जंगल और पेड़ मेरा अस्तित्व
आज विकास की भेंट चढ़ गए
नदियों से मेरा जीवन
जिसके किनारो को तुमने हड़प लिया
हे मानव !! अपने जीने के लिए
तुम क्यों मेरा जीना दुश्वार कर रहे


उत्तराखंड !! हाँ ये देव भूमि है
मैंने सैकड़ो देवी देवताओं को
अपने में है  स्थान दिया
शांति पहाड़ो का आचरण है
शोर से तुमने खलल डाला है
हे मानव !! तुम्हारे स्वार्थ ने
मुझे आज फिर छलनी किया
बना कर पाप का भोगी मुझे
देवी - देवताओ को रुष्ट किया
नदियों के प्रवाह से खेलना महंगा पड़ा
कई गाँव, घर और जानो को समां दिया  

ना चाहते हुए भी, कई बार तुम्हे
तुम्हारी गलती का अहसास कराया था
तुमने न सबक लिया न कोई प्रयास किया
बार बार फिर वही काम और बेहिसाब  किया
दुःख है मुझे कि तुम्हे इस बार सबक सिखाने
निर्दोष भी, भक्त भी मेरे गुस्से का शिकार हुए
शायद यह नुकसान तुम्हे याद दिलाता रहे
और तुम खुद को  और मुझे अब जीने दोगे.....




प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

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