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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

शांति शांति शांति


आतंकवाद का चेहरा

कैसा दिखता है
कोई जान नहीं पाया।
बस जान पाया तो केवल
दर्द, पीड़ा, भय और दशहत
खून, गोली, धमाका और नफरत
चारों ओर होते नज़ारे हताहत

फ़िर दिखती है
बिलखती दुनिया,
बढ़ती नफ़रत
प्रदर्शन करती जनता
उग्र होती भावनायें

एक आम इंसान
मूक दर्शक की भाँति
केवल सहम जाता है
अफसोस करता है
कल को संजोने कि आस में
फिर आँखे मूँद लेता है


कब होगी चारों ओर
शांति शांति शांति
कब रुकेगा आंतक, होगी
शांति शांति शांति
एक स्वर में विनती करे
शांति शांति शांति




- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल 


(एक पुरानी रचना दुसरे ब्लाग से)

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